संदेश

🙏श्रीकृष्ण 🙏

 🙏 *श्रीकृष्ण* 🙏 छंद - शार्दूल विक्रीड़ित  चरण -4, वर्ण -19, यति 12, 7 दो-दो या चारों पद सम तुकांत। मगण सगण जगण सगण तगण तगण, गुरु  SSS llS lSl llS   SSl SSl S वन्दे श्याम ललाम मेघ वदनं,प्रेमावतारी हरी l शोभाधाम स्वरूप पीत वसनं,श्री वेणुधारी हरी ll वन्दे शीश सुपिन्छ गुच्छ मदनं, मोहापहारी हरी   l  राधाकंत कृपालु कष्ट शमनं , वन्दे मुरारी हरी   ll नाना वेद उवाच नेति महिमा,..सृष्टा अनन्ता नमो l नाना ग्रंथ पुराण नेति चरितं, संताप हन्ता नमो ll   नाना दम्भ विषाद पाप हरणं, नाना दुखन्ता नमो l वन्दे पद्मपदाय पुण्य चरणं, भावी नियन्ता नमो ll वन्दे सर्व समर्थ सर्व अनघा , वन्दे दया सागरं l वन्दे चक्रधराय सर्व सुखदा , देवेश श्री आगरं l वन्दे काम महेंद्र मान हरणं, कंसारि दिव्याकरं l वन्दे इष्ट अनन्य, रिक्त शरणं, गोपाल वंशीधरं ll ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'

नैन तारा

 *गीत-नैन तारा* जगमगाये नैन तारा l दूर तक नभ पथ निहारा l दृष्टि अंबर तल बिछाए ,  व्यग्रता के युग बिताए l प्राण करते हैँ प्रतीक्षा,  साँवरे प्रियतम न आए  दृष्टि में नित आस लेकर,  पंथ मेघों का बुहारा l तीव्र होती नेह ज्वाला,  दंश देता है उजाला  l चित्त में आशा मिलन की,  कामना की कंठ माला l रोम प्राणों में शिरा में,   बह चली है प्रेम धारा l ऊष्णता की यह तितिक्षा,  धैर्य संयम की परीक्षा l कर रहा व्याकुल पपीहा,  स्वाति वारिद की प्रतीक्षा l मन प्रणय की याचना ले, फिर हृदय चातक पुकारा l ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'

कविता - आत्म मुग्धता

 *कविता- आत्म मुग्धता* ***************** हे जन नायक क्षण निज कर्तव्य विचारो,   तज निःस्व भाव जन गण की दशा निहारो l हे प्रजापाल करुणा हो विकल  प्रजा पर,  क्षण आत्म मुग्धता त्यागो दम्भ बिसारो l दिन- दिन भूधर सत्ता का दम्भ हुआ है ,  अद्भुत चारण युग का प्रारम्भ हुआ है  l वाचाल सचेतक  भूल गए मर्यादा,  अब मूक बधिर चौथा स्तम्भ हुआ है l नभ पथ गामी गंधर्व मनुज छवि धारो, पुष्पक विमान दुखियों के बीच उतारो l शोषित पीड़ित जन पीर  निकट आ देखो,  उत्तर जीवन संकट से नाथ उबारो l हे अंक गणित मर्मज्ञ  भेद के ज्ञाता,  हो कृपा दीन दुखियों पर स्वप्न प्रदाता l जीवन यापन का यक्ष प्रश्न सन्मुख है,  हो मूल्य वृद्धि पर अंकुश रंच विधाता l यह चक्र अक्ष पर घूमे काल निरंतर,  कब कौन शीर्ष पर स्थिर रहा यहाँ पर l चिरा शाश्वत नहीं किरीट न यह सिंघासन,  है  कौन जगत जो युगों रहा नृप होकर l ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'

श्रीकृष्ण

 *श्रीकृष्ण* (छंद - इंद्रवज्रा वर्णिक) वर्ण, यति - 11, चरण - 4 (2-2, चरण समतुकान्त) २ × तगण + १ जगण + SS हे द्वारिकानाथ कृपालु स्वामी l हे भक्ति आधीन नमो नमामी  ll श्रीकृष्ण संताप,दुखांत कारी  l कंसारि ,पपारि,भ्रमापहारी ll हे पार्थ के मित्र सदा कृपालू l हे दीन श्रीहीन सखा दयालू ll हे पूतनाकाल, अज्ञान नाशी l हे वासुदेवाय परा प्रकाशी ll गोविन्द आनंद सुखादि दाता l संसार के सार कृपा विधाता ll हे श्याम सत्काम सदा सहारे l हे "रिक्त"के प्राण प्रभू हमारे ll © संजी शुक्ला 'रिक्त'

श्रीकृष्ण

नमो वासुदेवाय श्यामं कृपालं l नमो प्रेमलीलावतारं दयालं ll नमो द्वारिकानाथ श्री नन्दलालं l नमो पार्थमित्राय कंसादि कालं ll सुपिन्छं लसद्भाल हे वेणुधारी l नमो केशवं माधवं श्री मुरारी ll नमो राधिकाकांत कल्याणकारी l नमामीश सृष्टीश मोहापहारी ll जगन्नाथ श्रीनाथ सः पूर्णकामी l पराज्ञान गोतीत सर्वज्ञ बामी ll नमो पद्मपादाय कोटि: नमामि l नमो देवकीनन्दनं 'रिक्त' स्वामी ll ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'