नैन तारा

 *गीत-नैन तारा*


जगमगाये नैन तारा l

दूर तक नभ पथ निहारा l


दृष्टि अंबर तल बिछाए , 

व्यग्रता के युग बिताए l

प्राण करते हैँ प्रतीक्षा, 

साँवरे प्रियतम न आए 

दृष्टि में नित आस लेकर, 

पंथ मेघों का बुहारा l


तीव्र होती नेह ज्वाला, 

दंश देता है उजाला  l

चित्त में आशा मिलन की, 

कामना की कंठ माला l

रोम प्राणों में शिरा में, 

 बह चली है प्रेम धारा l


ऊष्णता की यह तितिक्षा, 

धैर्य संयम की परीक्षा l

कर रहा व्याकुल पपीहा, 

स्वाति वारिद की प्रतीक्षा l

मन प्रणय की याचना ले,

फिर हृदय चातक पुकारा l

©संजीव शुक्ला 'रिक्त'

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